लेखनी कहानी -27-Feb-2023
दस बरस गुजर गए लेकिन पहले की तरह अब कोई मुझे पूछता तक नहीं। चारों ओर तरक्की का बोलबाला है लेकिन इस तरक्की ने हमसे हमारी खुशियों को छीन लिया है। हम पेड़ हमेशा मानव जीवन को खुशहाल बनाने में सहायक सिद्ध होते रहे हैं और साथ ही इनके लिए कुर्बान भी होते आएं हैं लेकिन पिछले दस सालों में तरक्की के नाम पर हमारे घर (जिसे इंसानी भाषा में जंगल कहा जाता है) को उजाड़ कर रख दिया गया है। "मैं एक आम का पेड़ हूं। पहले वाले समय में गर्मियों में जब भी बच्चों को छुटियां मिला करती थीं तो उनके दिन अक्सर मेरी और मेरे साथी पेड़ों की छाया में बीता करती थी। उनके हंसी ठिठोली और मस्ती से मैं भी गदगद हो जाता था। उनकी निश्छल मुस्कान के आगे आम तोड़ने के लिए उनके द्वारा मारे गए पत्थरों से मिलने वाले जख्म भी छोटे महसूस होते थे। बदलते वक्त के साथ मेरे आस पास घुमते बच्चों की संख्या कम होती गई और धीरे धीरे हम अकेले हो गए। अकेलेपन की इस पीड़ा से अच्छी तो वो पीड़ा थी जो पहले पत्थर से मिलती थी। देखते ही देखते पांच साल बीत गए। पहले जहां मेरे आस पास साथी पेड़ हुआ करते थे, वहां आज अलग अलग प्रकार के अजीबोगरीब तरीके से सजी हुई मेज़ कुर्सियां पड़ी हुई हैं और मैं एक सीसे में क़ैद आते जाते लोगों को देखता रहता हूं। मैं चीखना चिलाना चाहता हूं लेकिन क्या फायदा। किसी को कौन सा कोई फर्क पड़ता है। मेरी सारी शाखाएं को भी मुझसे अलग कर दिया गया है। मैं बस एक बेजान लाश बन कर रह गया हूं।
समाप्त #
Alka jain
01-Mar-2023 06:16 PM
Nice 👍🏼
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पृथ्वी सिंह बेनीवाल
27-Feb-2023 02:54 PM
Nice 👍🏼
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Abhinav ji
27-Feb-2023 07:57 AM
Very nice
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